ध्येय मिल गया, और ध्येय मिलते ही, मन का नाजुक यंत्र काम करने लग गया।
2.
जिह्वा बिना हड्डी वाला रबर सा नाजुक यंत्र है जो मनचाहा पलटता है और भोजन को अन्दर बाहर करता है.
3.
महात्मा गांधी ने कहा कि-वैसा मैं कैसे हो सकता हूं, जब मैं यह जानता हूं कि यह शरीर भी एक बहुत नाजुक यंत्र ही है।
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और इस शरीर जैसे नाजुक यंत्र को सुधारने का प्रयत्न करने में जो श्रम किया जाता है, वह न-तो कुछ जैसी वस्तु के लिए ही किया जाता है।
5.
यंत्रों के बारे गाँधी जी के विचारों को पढने के बाद जब रामचंद्रन ने उनसे पूछा था कि ' क्या आप तमाम यंत्रों के खिलाफ हैं '', तो गाँधी जी ने मुस्कराते हुए कहा था, कि '' वैसा मैं कैसे हो सकता हूँ, जब मैं जानता हूँ कि यह शरीर भी एक बहुत नाजुक यंत्र ही है।